Monday, May 19, 2014

शादी को दो आत्माओं का मिलन कहा जाता है जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के द्वार खुलते हैं। संसार की रचना करने वाले भगवान ब्रह्मा ने मनुस्मृति की रचना की जिसके अनुसार विवाह के 8 प्रकार  हैं।


1. ब्रह्म विवाह- ब्रह्म विवाह को सर्वोच्च विवाह माना गया है जिसमे दोनो पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोज्ञ वर से कन्या का विवाह निश्चित कर दिया जाता है और सामान्यतः इस विवाह के बाद कन्या को आभूषणयुक्त करके विदा किया जाता है।  वधु के पिता द्वारा कन्यादान इस विवाह की महत्वपूर्व रीति है प्राचीन समय में गुरुकुल प्रथा थी जिसमे लड़को को बचपन में ही उनकी शिक्षा के लिए गुरु के पास भेज दिया जाता था जहाँ वो अपनी शिक्षा पूरी होने तक रहते थे शिक्षा पूरी होने के बाद लड़के के माता पिता उसके लिए एक संस्कारी लड़की की तलाश में लग जाते थे और ऐसी लड़की मिलते ही सबकी रज़ामंदी और रीति रिवाज़ों के साथ उसका विवाह कर दिया जाता था। आज की  "अरेंज मैरेज" 'ब्रह्म विवाह' का ही रूप है जिसे सभी विवाहों में श्रेष्ट माना गया है क्योंकि इस विवाह में किसी भी तरीके का लेन देन नहीं किया जाता था  

2. दैव विवाहजब किसी सेवा कार्य (विशेषतः धार्मिक अनुष्टान) के मूल्य के रूप में अपनी कन्या को दान में दे जाए तो यह 'दैव विवाह' कहलाता है जैसे कि देवदासी प्रथा। इस तरह के विवाह में ऐसी लड़की को यज्ञ समारोह में किसी पुजारी को दान में दे दिया जाता है जिसके लिए उसके माता पिता सुयोग्य वर ढूंढ़ने में नाकाम हो जाते हैं। लड़की को दुल्हन की तरह सजा कर बलिदान समारोह में लाया जाता है और वहाँ मौजूद किसी भी पुजारी से शादी करवा दी जाती है। शास्त्रों के अनुसार ये विवाह नारीत्व के लिए अपमानजनक माना गया है।

3. आर्श विवाहजब कन्या के माता पिता अपनी पुत्री का विवाह करने में असमर्थ हो तब वर पक्ष कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करकेकन्या से विवाह कर लेता है

4. प्रजापत्य विवाहयह विवाह भी ब्रह्मा विवाह की तरह होता है जहाँ कन्या पक्ष सुयोग्य वर की तलाश करते हैं। इस तरह के विवाह में कन्यादान नहीं किया  जाता बल्कि पाणिग्रहण की रस्म की जाती है जहाँ वधु के पिता अपनी कन्या का हाथ वर के हाथ में देकर उसकी सदैव रक्षा करने का वचन लेते हैं


gandharva vivah5. गंधर्व विवाहपरिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है पौराणिक कथाओं में इस विवाह के बहुत से उदहारण हैं भीमा ने हिडिम्बा से, दुष्यंत ने शकुंतला से, कामदेव ने रति से, दक्षेय ने प्रजापति से, कच ने देवयानी से, पृथ्वीराज ने संयुक्त से। पौराणिक कहानियों में और भी  ऐसे कई उदहारण हैं। आज के समय में किया जाने वाला प्रेम विवाह इसी का रूप है


 6. असुर विवाहकन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है जो कि भारत के कई समुदायों में आज भी किया जाता है। यह विवाह सबसे अनुपयुक्त विवाह माना गया है इस विवाह में शादी करने के लिए लड़का-लड़की के माता-पिता को उनकी क्षमता के अनुसार पैसे देता है और लड़की को खरीद कर शादी करता है।

7. राक्षस विवाहकन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना 'राक्षस विवाहकहलाता है इस तरह के विवाह में लड़का युद्ध में लड़की को जीत कर उससे उसकी इच्छा के विरुद्ध शादी करता है। इस तरह का विवाह प्राचीन सभ्यता में बहुत आम था। क्षत्रियों और योद्धाओं के युद्ध में जीत जाने के उपलक्ष्य में उन्हें उनकी मनपसंद लड़की पुरस्कार रूप में दी जाती थी। इस  तरह का विवाह धर्म के खिलाफ माना जाता था।


8. पैशाच विवाहकन्या की मदहोशी (गहन निद्रा,मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है। इस तरह का विवाह किसी भी रूप से उपयुक्त नहीं है। 

इन 8 प्रकार  के विवाहों में से कुछ विवाह आज भी कई जाति  और धर्म के अनुसार उचित माने जाते हैं

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